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Showing posts from March, 2010

बनारस… जिंदगी और जिंदादिली का शहर

( बनारस न मेरी जन्मभूमि है और न ही कर्मभूमि... फिर भी ये शहर मुझे अपना लगता है... अपनी लगती है इसकी आबो हवा और पूरी मस्ती के साथ छलकती यहां की जिंदगी... टुकड़ों-टुकड़ों में कई बार इस शहर में आया हूं मैं... और जितनी बार आया हूं... कुछ और अधिक इसे अपने दिल में बसा कर लौटा हूं... तभी तो दूर रहने के बावजूद दिल के बेहद करीब है ये शहर... मुझे लगता है कि आज की इस व्यक्तिगत महात्वाकांक्षाओं वाले इस दौर में, जहां पैसा ज्यादा मायने रखने लगा है, जिंदगी कम... इस शहर से हमें सीखने की जरुरत है...इस बार इसी शहर के बारे में...) साहित्य में मानवीय संवेदनाओं और अनुभूतियों के नौ रस माने गये हैं... लेकिन इसके अलावा भी एक रस और है, जिसे साहित्य के पुरोधा पकड़ने से चूक गये... लेकिन जिसे लोक ने आत्मसात कर लिया... वह है बनारस... जीवन का दसवां रस... जिंदगी की जिंदादिली का रस... जिसमें साहित्य के सारे रस समाहित होकर जिंदगी को नया अर्थ देते हैं... जिंदगी को मस्ती और फक्कड़पन के साथ जीने का अर्थ... कमियों और दुख में भी जिंदगी के सुख को तलाश लेने का अर्थ़... बहुत पुराना है बनारस का इतिहास... संभवतः सभ्यता...