पीपली लाइव हिट हो गई... आमिर खान की पिछली फिल्मों की तरह ही पीपली लाइव भी रिलीज से पहले ही इतनी सुर्खियां बटोर ले गई की हिट हो गई... आमिर खान अपनी फिल्मों की मार्केटिंग का फंडा खूब जानते हैं... बाजार की फिलॉसफी कहती है कि प्रोडक्ट नहीं प्रोडक्ट का विज्ञापन मायने रखता है... आमिर खान बाजार के इसी फार्मूले पर चले और कामयाब रहे... महज तीन करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म के प्रचार पर उन्होने सात करोड़ की भारी भरकम रकम खर्च की... और फिर भी फायदे में हैं... रिलीज से पहले ही पीपली लाइव कई करोड़ की कमाई कर चुकी है, जो यकीनन आगे और बढ़ेगी ही... जाहिर है आम जनता को खून का आंसू रुलाने वाली महंगाई डायन का असर आमिर खान ने अपनी फिल्म पर नहीं पड़ने दिया...
पीपली लाइव वाकई लीक से हटकर बनी एक संजीदा फिल्म है... और यकीनन ये फिल्म आमिर खान के कद को और ऊंचा ही करेगी... लेकिन सवाल है कि ये फिल्म उन किसानों का कितना भला करेगी, जो कर्ज के बोझ तले भूखमरी से निजात के लिए खुदकुशी करने पर मजबूर हो जाते हैं... इसे शायद बाजार का ही दबाव कहें या मार्केटिंग का नुस्खा कि फिल्म की कहानी में भूखमरी के शिकार किसानों की आत्महत्या के जिस मुद्दे को उठाया गया है... रिलीज से पहले प्रचार में इसे मुद्दे को कोई तरजीह नहीं मिली... पीपली लाइव में इन्ही किसानों की कहानी है... लेकिन मजे की बात ये कि फिल्म के प्रोमोशन और प्रचार से ये किसान गायब रहे... हां चर्चा में रही टीआरपी के पीछे भागती दौड़ती मीडिया... पीपली लाइव में मीडिया के इस चरित्र पर खूब कटाक्ष किया गया है... और इसे मीडिया के पक्ष में माने या विरोध में कि अपनी ही खिंचाई करने वाली इस फिल्म के पीछे भी मीडिया भागता दौड़ता रहा... ये भी शायद टीआरपी का ही दबाव था...
फिल्म के रिलीज से पहले फिल्म की कहानी से जुड़ा एक सवाल खूब छाया रहा... और ये सवाल अपने आप में कई सवाल खड़े करता है... आमिर और उनकी पूरी टीम के सरोकारों पर... मीडिया के सरोकारों पर सवाल... फिल्म की कहानी से जुड़ा ये सवाल फिल्म के मुख्य किरदार किसान नत्था की खुदकुशी से जुडा था रिलीज से पहले ये सवाल मीडिया की सुर्खियों में था... सब ये जानने को उत्सुक थे कि नत्था मर रहा है कि नहीं... लेकिन किसी ने एकबार भी ये जानने की कोशिश नहीं की कि नत्था बच जाएगा कि नहीं... जिंदा रहेगा कि नहीं... जबकि नत्था के जिंदा रहने का सवाल किसानों की जिंदगी और उनकी उम्मीदों के जिंदा रहने से जुड़ा था... एक किसान अपनी गरीबी में भी उम्मीदों के दिए जलाए रहता है... और नत्था के जिंदा रहने का मतलब उम्मीदों का बचा रहना था... लेकिन फिल्म के हिट होने के लिए डायरेक्टर प्रोड्यूसर को और मीडिया के टीआरपी बटोरने के लिए, नत्था की जिंदगी से ज्यादा उसकी मौत पर सस्पेंस बनाए रखना जरुरी था... लिहाजा किसी ने नत्था की जिंदगी को तवज्जो देना जरुरी नहीं सोचा... और यहीं बेहतरीन फिल्मकार से संजीदा इंसान का सफर तय करने वाले आमिर खान के सरोकार पर सवाल भी खड़े होते हैं... क्या आम जन के मुद्दे आमिर खान के लिए फिल्म को हिट कराने के महज अच्छे सब्जेक्ट भर हैं... इससे अधिक कुछ नहीं... पीपली लाइव और आमिर की पिछली फिल्मों को ध्यान में रखते हुए इस सवाल पर आप भी जरुर सोचिएगा...
बहरहाल इन तमाम सवालों के बावजूद पीपली लाइव एक अच्छी और देखने लायक फिल्म है... और इसे देखना चाहिए भी... ताकि कृषि प्रधान हिंदुस्तान के किसानों की हालत और हकीकत से थोड़ा ही सही रुबरु हो सकें... और जब फिल्म देखकर निकलें तो ये सवाल जेहन को मथता रहे कि हमारा पेट भरनेवाले किसान खुद कितने भूखे हैं... ये भूलकर कि बाजार ने इस भूख को भी एक अदद हिट और हॉट बिकाऊ आयटम में तब्दील कर दिया है...
नोट- पीपली लाइव में नत्था मरा भी है और बच भी गया है... लेकिन अपनी किसानी पहचान के साथ जिंदा नहीं रहता है... दिल्ली पहुंचकर गुमनाम हो जाता है... और फिल्म का ये क्लाइमेक्स भी बाजार का नया संदेश देता है... अपनी थोड़ी बहुत जमीन को मजबूरी में छोड़कर शहरों में मजदूरी के लिए पलायन करते छोटे मजदूर-किसानों और अपनी बेशकीमती जमीनों को बेचकर शहर की मार्डन लाइफ में डूबते उतराते बड़े और मझोले किसानों की हालत और खबरों से बाजार के इस संदेश को समझा जा सकता है... संदेश, किसानों के वजूद के खत्म होने का... और यकीन मानिए जिस दिन किसानों की पहचान और वजूद खत्म हो जाएगी... आर्थिक महाशक्ति बनने के मुगालते में डूबे हिंदुस्तान की गुलामी तय है...
Comments
khair, aapne jo sawal uthaye hain ve prasangik aur sarthak hain..... dekhte hain ki ki inke javab kaun de sakta hai......aamir, nattha ya fir koi aur......
that today advertisement of a movie decides its going to be hit or not.It only works for masses not for classes.Today the audience can judge between a normal timepass movie & one dealing with real life problems & subjects.It doesn't bother them whether its a multi-starer or not.Sometimes it also depends how its been presented to us by the director.In that case we all know aamir is the best.He picks a subject & present it in such a way that it not only entertain us but also make us think about the message given by him through it.So it really doesn't matter if he earns a little profit cause he's in this business for a living too.
Now about the media. I think media is itself responsible for its present state.Today they pay more attention towards all the worthless things than news.Today all the important things happening across the globe are ignored & whether shahrukh can quit smoking or not & is the world going to end in 2012 are national news.Nowadays most of the people likes to watch zoom than any news channel.Hence they need to understand their duty & for what they are in this field.
Navneet Rahul Shukla, Nagpur (M.H.)
mob.-09665757875
c/o Mr.G.L.Shukla,Korba,(C.G.)