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पाकिस्तान में बैन बॉलीवुड-2

फिल्मों की खबरों और आलेख के लिए देखें-  http://www.filmivilmi.com/                                                                https://www.facebook.com/filmivilmi/ पाकिस्तान में बैन बॉलीवुड-2 2017 में कई फिल्मों पर लगा पाक में बैन आठ चर्चित भारतीय फिल्मों को नहीं मिली रिलीज की अनुमति पाकिस्तान  में बैन बॉलीवुड की पहली सीरिज में फिल्मी-विल्मी ने आपको उन बॉलीवुड फिल्मों के बारे में बताया, जिन्हें इस साल यानी 2018 में पाकिस्तान ने अपने यहां प्रदर्शन की मंजूरी नहीं दी. इस कड़ी में आज पेश है  2017 में पाकिस्तान में बैन हुई बॉलीवुड फिल्मों की जानकारी. 2017 संभवत: ऐसा साल रहा है, जिसमें पाकिस्तान ने सबसे ज्यादा बॉलीवुड फिल्मों पर बैन लगाया. यही नहीं इस साल तीनों खान्स यानी सलमान, आमिर और शाहरूख की फिल्में भी बैन की इस लिस्ट में शामिल थीं, जबकि पाकिस्तान में इनकी फैन फॉलोइंग बहुत ज्यादा है. कुल मिलाकर तकरीबन आठ चर्चित फिल्में ऐसी रहीं, जिन्हें पाकिस्तान में रिलीज की अनुमति नहीं मिली. आइए जानते हैं इन फिल्मों के बारे में- 1. ट्यूबलाइट  इंडो-चाइना वार पर बेस्ड सलमान
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पाकिस्तान में बैन बॉलीवुड-1

फिल्मों की खबरों और आलेख के लिए देखें-  http://www.filmivilmi.com/                                                                https://www.facebook.com/filmivilmi/                                पाकिस्तान में बैन बॉलीवुड-1 दो दर्जन से ज्यादा बॉलीवुड फिल्मों पर बैन लगा चुका है पाकिस्तान साल के दो महीने में तीन बॉलीवुड फिल्में पाकिस्तान में बैन दुनिया और सिनेमा के ग्लोबल होने के बाद बॉलीवुड भी हिंदुस्तान की सरहद से बाहर निकला और अपनी कामयाबी के झंडे गाड़े, लेकिन इस दौरान पाकिस्तान के साथ उसका रिश्ता अजीबोगरीब रहा है. क्योंकि एक तरफ जहां बॉलीवुड फिल्मों को जहां पूरी दुनिया में प्यार मिल रहा है और वो हर जगह अपना परचम लहरा रही हैं, पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान उन्हें बैन करने में लगा है. हालिया रिलीज अय्यारी से लेकर ऐसी फिल्मों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है, जिन्हें पाकिस्तान ने अपने यहां रिलीज नहीं होने दिया. जबकि देखा जाय तो पाकिस्तान में बॉलीवुड स्टार्स और बॉलीवुड फिल्मों का क्रेज वहां के स्टार और फिल्मों से ज्यादा है. यही नहीं पाकिस्तानी स्टार्स में भी बॉलीवुड के प्रति दीवनगी साफ

सतरंगी संसार के जून अंक का संपादकीय

सिनेमा में होली: बिसर गई होली, बिला गए रंग

होली लोक का त्यौहार है और सिनेमा लोक का माध्यम. लेकिन जबसे हिंदुस्तान ने नव उदारीकरण के घोड़े पर सवार होकर कुलांचे भरना शुरू किया और सिनेमा लोकल से ग्लोबल होने लगा, होली गायब होने लगी. वैसे ही जैसे छद्म आर्थिक विकास के नाम पर क्रिएट किए गए गुडी-गुडी माहौल में लोक और लोक जीवन की हलचलें दर किनार होने लगी. अब हिंदी सिनेमा में होली के रंग नहीं दिखते. लोक के इस माध्यम ने लोक के इस महापर्व को भुला दिया है. सिनेमा से होली बिसर गई है. होली के रंग बिला गए हैं. होली प्रेम, मस्ती और उल्लास का त्यौहार है. इसका रंग कभी हमारी फिल्मों में जमकर बरसता था. फिल्मों में होली के दृश्य और गीत आम थे. दर्शकों को भी रंग खेलने का फिल्मी अंदाज खूब रास आता था. फिल्मों में होली की मस्ती दर्शकों को सिनेमा हॉल तक खींच लाती थी तो होली के गीत उन्हें इस लोकपर्व को मनाने का सिनेमाई अंदाज दे जाते थे. फिल्मकार भी कभी कहानी को आगे बढ़ाने के नाम पर तो कभी किसी और बहाने से होली के दृश्य और गीत अपनी फिल्मों में डालने के लिए उत्सुक रहते थे. बात अगर फिल्मों में होली के यादगार गीतों और दृश्यों की करें तो सबसे पहले 1944 में आ

अभिनय की नई परिभाषा गढ़ती बिंदास बालन

हिंदी सिनेमा में मौजूदा दौर की अभिनेत्रियों के बीच अगर तुलना की जाय तो विद्या बालन उनमें सबसे अलग और अलहदा कही जा सकती हैं. खूबसरत, बिंदास और संजीदा अभिनय की बेहतरीन बानगी. उन्हें परदे पर देखना अच्छा लगता है, क्योंकि वो अभिनय नहीं करती अपने किरदार में उतर जाती हैं. विद्या बालन खूबसूरत हैं और हिंदी सिनेमा के ट्रेंड के तहत किसी अभिनेत्री के कामयाब होने के लिए इतना काफी है. लेकिन ये ट्रेंड विद्या बालन पर लागू नहीं होता. बाकी अभिनेत्रियों की तरह बालन को रूपहले परदे की खूबसूरत गुड़िया बनने से परहेज है. और इसीलिए वो तभी किसी फिल्म में काम करने को राजी होती हैं, जब उन्हें किरदार में दम दिखाई पड़ता है. अगर रोल दमदार नहीं है तो वो बड़े से बड़े बैनर को ठुकराने में देर नहीं लगाती. विद्या ने विशाल भारद्वाज की फिल्म डायन इसीलिए छोड़ दी क्योंकि उनके मुताबिक फिल्म में उनके करने के लिए कुछ नहीं था. डर्टी पिक्चर की कामयाबी ने विद्या बालन के करियर में एक और नगीना जड़ दिया है. वो अपनी समकालीन अभिनेत्रियों से कोसों आगे दिखाई देती नजर आ रही हैं. अभिनय में भी और बोल्डनेस में भी. जिस रोल को करने में बड़ी-ब

शहीदे आज़म की याद में

( 23 मार्च, भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव की शहादत का दिन... तीनों ने एक ही मकसद के तहत फांसी के फंदे को चूमा था और तीनों की शहादत किसी मायने में कम नहीं थी... लेकिन इन तीनों में भगत सिंह ज्यादा बौद्धिक और विचारवान थे... दरअसल भगत सिंह सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं, महान स्वप्नद्रष्टा भी थे... उनका लक्ष्य महज हिंदुस्तान को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना नहीं था... उनकी आंखों में शोषणमुक्त और हर तरह की गैरबराबरी की नुमाइंदगी करने वाले आजाद हिंदुस्तान का सपना तिरता था... उनका सपना आज भी मरा नहीं है... और न ही उनके विचार... नव उदारीकरण के इस दौर में जब बाकी और गरीब भारत चंद अमीर मुट्ठियों का नया उपनिवेश बनता जा रहा है, भगत सिंह और उनके विचार आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं... शहादत दिवस के अवसर कुमार नयन की एक कविता के साथ शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को श्रद्धांजली... आज भगत सिंह हमारे बीच होते तो शायद वही कहते जो उनके बहाने कुमार नयन ने लिखा है...) पिघलेंगे पर खत्म नहीं होंगे ईश्वर नहीं हूं न अतीत हूं इस देश का मुझे मूर्ति में तब्दील कर मेरा पूजनोत्सव करने वाले जड़वादिय

दो शहीदों की याद: भगत सिंह और पाश

कल यानी 23 मार्च भगत सिंह का ही नहीं, पंजाबी के मशहूर कवि अवतार सिंह संधू ‘पाश’ की भी शहादत का दिन है... फर्क सिर्फ ये है कि भगत सिंह गुलाम भारत की आजादी की लड़ाई में शहीद हुए थे, जबकि पाश आजाद भारत में... पाश ने भ्रष्ट राजनीति से उपजी सरकारी तानाशाही और उसी से निकले खालिस्तानी आतंकवाद दोनों के खिलाफ अपनी कविताओं के जरिए आवाज बुलंद की थी... वे दोनों की आंख की किरकिरी बने हुए थे... 23 मार्च 1988 को खालिस्तानी उग्रवादियों ने महज उनकी हत्या कर दी... पाश उस समय महज 38 साल के थे... पाश और भगत सिंह दोनों वामपंथी विचारधारा के समर्थक थे... और हर तरह की गैर बराबरी और तानाशाही के खिलाफ... पाश भगत सिंह से काफी प्रभावित भी थे... 1982 में उन्होने शहादत दिवस पर शहीदे आजम की याद में एक कविता भी लिखी थी... पाश की उसी कविता से पाश और भगत सिंह दोनों को श्रद्धांजली... ये बताते हुए भी कि विचार कभी नहीं मरते... न भगत सिंह के मरे और न ही पाश के... उसकी शहादत के बाद बाकी लोग किसी दृश्य की तरह बचे ताजा मुंदी पलकें देश मे सिमटती जा रही झांकी की देश सारा बच रहा साकी उसके चले जाने के बाद उसकी शहादत के बा