( 23 मार्च, भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव की शहादत का दिन... तीनों ने एक ही मकसद के तहत फांसी के फंदे को चूमा था और तीनों की शहादत किसी मायने में कम नहीं थी... लेकिन इन तीनों में भगत सिंह ज्यादा बौद्धिक और विचारवान थे... दरअसल भगत सिंह सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं, महान स्वप्नद्रष्टा भी थे... उनका लक्ष्य महज हिंदुस्तान को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना नहीं था... उनकी आंखों में शोषणमुक्त और हर तरह की गैरबराबरी की नुमाइंदगी करने वाले आजाद हिंदुस्तान का सपना तिरता था... उनका सपना आज भी मरा नहीं है... और न ही उनके विचार... नव उदारीकरण के इस दौर में जब बाकी और गरीब भारत चंद अमीर मुट्ठियों का नया उपनिवेश बनता जा रहा है, भगत सिंह और उनके विचार आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं... शहादत दिवस के अवसर कुमार नयन की एक कविता के साथ शहीदे आज़म भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को श्रद्धांजली... आज भगत सिंह हमारे बीच होते तो शायद वही कहते जो उनके बहाने कुमार नयन ने लिखा है...)
पिघलेंगे पर खत्म नहीं होंगे
ईश्वर नहीं हूं न अतीत हूं इस देश का
मुझे मूर्ति में तब्दील कर
मेरा पूजनोत्सव करने वाले जड़वादियों !
मुझे फिल्मी कहानी बनाने वाले चतुर वाणिकों !
मत भूलो कि मैं इतिहास होकर भी इतिहास नहीं बना हूं अभी
वर्तमान हूं मैं और जिंदा हूं अभी
उसी सूली पर लटका हुआ
उतरा था जिस पर से कभी मेरा नश्वर शरीर
पर आग में तपे हुए मेरे शब्द
रह गये थे वहीं के वहीं
हवा नहीं हैं वे शब्द न बादल कि उड़ जायें कहीं
ठोस जमीन पर उगे हिमालय जैसे पहाड़ हैं वे
पिघलेंगे पर खत्म नहीं होंगे कभी
मुझ पर फूलों की बारिश मत करो
मत डालो मेरी प्रतिमा पर फूल मालाएं
मेरे नजदीक आओ साथियों
मुझसे पूछो कि मैं नास्तिक क्यों हूं
मुझे पढ़ो कि मैं इस अंधेरे के खिलाफ
क्या-क्या कर सकता हूं
मैं तुम्हारी ही तरह युवा स्वप्नदर्शी हूं साथियों
इसलिए मुझे प्रणाम मत करो
मुझे गलबंहिया दो, खेलो, हंसी ठट्टा करो मेरे साथ
मुझे अपने घर ले चलो और इत्मीनान से सोचो
क्यों मैं क्रांतिकारी हूं पर हिंसक नहीं
क्यों मेरे शब्द अभी तक जिंदा हैं
और क्यों हम आजाद नहीं हुए अभी तक
इन सारे रहस्यों की कुंजी हैं मेरे शब्द
अब जीवन नहीं, मेरे विचारों के दर्शन करो
खोलो मुझे परत-दर-परत और जानो
कि मैं बेचैन हूं किताबों से निकलकर
तुम्हारी आवाज में घुलने के लिए
आओ ! सूली से उतारो मुझे
और अपनी गर्म हथेलियों पर लेकर
उतर जाओ मुक्ति के महा संघर्ष में
-कुमार नयन
पिघलेंगे पर खत्म नहीं होंगे
ईश्वर नहीं हूं न अतीत हूं इस देश का
मुझे मूर्ति में तब्दील कर
मेरा पूजनोत्सव करने वाले जड़वादियों !
मुझे फिल्मी कहानी बनाने वाले चतुर वाणिकों !
मत भूलो कि मैं इतिहास होकर भी इतिहास नहीं बना हूं अभी
वर्तमान हूं मैं और जिंदा हूं अभी
उसी सूली पर लटका हुआ
उतरा था जिस पर से कभी मेरा नश्वर शरीर
पर आग में तपे हुए मेरे शब्द
रह गये थे वहीं के वहीं
हवा नहीं हैं वे शब्द न बादल कि उड़ जायें कहीं
ठोस जमीन पर उगे हिमालय जैसे पहाड़ हैं वे
पिघलेंगे पर खत्म नहीं होंगे कभी
मुझ पर फूलों की बारिश मत करो
मत डालो मेरी प्रतिमा पर फूल मालाएं
मेरे नजदीक आओ साथियों
मुझसे पूछो कि मैं नास्तिक क्यों हूं
मुझे पढ़ो कि मैं इस अंधेरे के खिलाफ
क्या-क्या कर सकता हूं
मैं तुम्हारी ही तरह युवा स्वप्नदर्शी हूं साथियों
इसलिए मुझे प्रणाम मत करो
मुझे गलबंहिया दो, खेलो, हंसी ठट्टा करो मेरे साथ
मुझे अपने घर ले चलो और इत्मीनान से सोचो
क्यों मैं क्रांतिकारी हूं पर हिंसक नहीं
क्यों मेरे शब्द अभी तक जिंदा हैं
और क्यों हम आजाद नहीं हुए अभी तक
इन सारे रहस्यों की कुंजी हैं मेरे शब्द
अब जीवन नहीं, मेरे विचारों के दर्शन करो
खोलो मुझे परत-दर-परत और जानो
कि मैं बेचैन हूं किताबों से निकलकर
तुम्हारी आवाज में घुलने के लिए
आओ ! सूली से उतारो मुझे
और अपनी गर्म हथेलियों पर लेकर
उतर जाओ मुक्ति के महा संघर्ष में
-कुमार नयन
Comments