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Showing posts from December, 2010

पाश से क्षमा याचना सहित

मेरे प्रिय कवि पाश ने कहा है, ‘सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना’ लेकिन दोस्त, इससे कम खतरनाक नहीं होती सपनों की मौत से पहले की प्रक्रिया उम्मीदों का एक-एक कर ध्वस्त होते जाना जैसे बेबस जिंदगी एड़ियां रगड़ते हुए तिल-तिल कर दम तोड़ देती है दोस्त, ये भी कम पीड़ादायक नहीं होता... एक सपने के टूटने के बाद, आंखों में दूसरा सपना पालना और फिर उसे भी छन से टूटकर बिखरते देखना सपने देखने और उनके टूटने के अंतहीन सिलसिले से गुजरना दोस्त, ये भी कम त्रासद नहीं होता... सपनों का मर जाना वाकई खतरनाक होता है लेकिन जबतक सपने, आखिरी हिचकी लें जिंदगी कई मौत मर जाती है फिर न जीने की इच्छा बचती है और न मौत की आरजू होती है... यकीन मानो मेरे दोस्त, ये भी कम खतरनाक नहीं होता...

दो बोध-कथाएं

1-अंगूठा वत्स... तुम तो भारतीय संस्कृति का अपमान कर रहे हो..! क्या तुम्हे मालूम नहीं कि हमारी संस्कृति में गपरु शिष्य परंपरा कितनी गौरव पूर्ण रही है..? याद है गुरुदेव! शिष्य ने विनम्रता से जवाब दिया फिर गुरुदक्षिणा देने से इंकार क्यों कर रहे हो..? क्या तुम्हे गुरु द्रोण और एकलव्य की कहानी नहीं ज्ञात है...? ज्ञात है गुरुदेव, इसीलिए तो सचेत और सतर्क हूं... शिष्य ने उसी विनम्रता से जवाब दिया क्या मतलब...? गुरुदेव चौंके मतलब ये गुरुदेव कि एकलव्य सीधा और सरल आदिवासी युवक था.. छल कपट से कोसो दूर... इसीलिए गुरु द्रोण के कपटपूर्ण व्यवहार को नहीं समझ पाया और अपना अंगूठा ही नहीं अपना हुनर भी गंवा बैठा. लेकिन एक बात है गुरुदेव... क्या...? गुरुदेव ने पूछा उसने अपना अंगूठा गंवाकर आनेवाली पीढ़ी के सारे शिष्यों को सीख जरुर दे डाली. सीख... कैसी सीख...? गुरुदेव ने चौंकते हुए पूछा. यही सीख गुरुदेव कि ऐसे कपटी गुरु को अंगूठा देना नहीं चाहिए, अंगूठा दिखाना चाहिए.. ऐसे... शिष्य ने गुरु को ठेंगा दिखाया और वहां से चलता बना. --------------------------------------------- 2-स्वर्ग का अधिकारी युध...