1-अंगूठा
वत्स... तुम तो भारतीय संस्कृति का अपमान कर रहे हो..! क्या तुम्हे मालूम नहीं कि हमारी संस्कृति में गपरु शिष्य परंपरा कितनी गौरव पूर्ण रही है..?
याद है गुरुदेव! शिष्य ने विनम्रता से जवाब दिया
फिर गुरुदक्षिणा देने से इंकार क्यों कर रहे हो..? क्या तुम्हे गुरु द्रोण और एकलव्य की कहानी नहीं ज्ञात है...?
ज्ञात है गुरुदेव, इसीलिए तो सचेत और सतर्क हूं... शिष्य ने उसी विनम्रता से जवाब दिया
क्या मतलब...? गुरुदेव चौंके
मतलब ये गुरुदेव कि एकलव्य सीधा और सरल आदिवासी युवक था.. छल कपट से कोसो दूर... इसीलिए गुरु द्रोण के कपटपूर्ण व्यवहार को नहीं समझ पाया और अपना अंगूठा ही नहीं अपना हुनर भी गंवा बैठा. लेकिन एक बात है गुरुदेव...
क्या...? गुरुदेव ने पूछा
उसने अपना अंगूठा गंवाकर आनेवाली पीढ़ी के सारे शिष्यों को सीख जरुर दे डाली.
सीख... कैसी सीख...? गुरुदेव ने चौंकते हुए पूछा.
यही सीख गुरुदेव कि ऐसे कपटी गुरु को अंगूठा देना नहीं चाहिए, अंगूठा दिखाना चाहिए.. ऐसे... शिष्य ने गुरु को ठेंगा दिखाया और वहां से चलता बना.
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2-स्वर्ग का अधिकारी
युधिष्ठिर से जुए में द्रौपदी को जीत लेने के बाद दुर्योधन-दु:शासन सहित सभी कौरवों ने मिलकर भरी सभा में द्रौपदी को नंगा करने का कुत्सित प्रयास किया. इस अधार्मिक-अनैतिक कृत्य के परिणाम स्वरुप दुर्योधन सहित सभी कौरवों का विनाश हो गया. उन्हे अपनी करनी का फल मिला. वे नर्क के वासी हुए. जबकि जुए में अपनी पत्नी को दांव पर लगाने वाले धर्मराज युधिष्ठिर स्वर्ग में रहने के अधिकारी बने.
…इस धर्म-कथा से हमें ये सीख मिलती है कि पत्नी हाड़-मांस की एक ऐसी वस्तु(इंसान नहीं) है, जिसे जुए में दांव पर लगाने या बाजार में बेच देने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है…
वत्स... तुम तो भारतीय संस्कृति का अपमान कर रहे हो..! क्या तुम्हे मालूम नहीं कि हमारी संस्कृति में गपरु शिष्य परंपरा कितनी गौरव पूर्ण रही है..?
याद है गुरुदेव! शिष्य ने विनम्रता से जवाब दिया
फिर गुरुदक्षिणा देने से इंकार क्यों कर रहे हो..? क्या तुम्हे गुरु द्रोण और एकलव्य की कहानी नहीं ज्ञात है...?
ज्ञात है गुरुदेव, इसीलिए तो सचेत और सतर्क हूं... शिष्य ने उसी विनम्रता से जवाब दिया
क्या मतलब...? गुरुदेव चौंके
मतलब ये गुरुदेव कि एकलव्य सीधा और सरल आदिवासी युवक था.. छल कपट से कोसो दूर... इसीलिए गुरु द्रोण के कपटपूर्ण व्यवहार को नहीं समझ पाया और अपना अंगूठा ही नहीं अपना हुनर भी गंवा बैठा. लेकिन एक बात है गुरुदेव...
क्या...? गुरुदेव ने पूछा
उसने अपना अंगूठा गंवाकर आनेवाली पीढ़ी के सारे शिष्यों को सीख जरुर दे डाली.
सीख... कैसी सीख...? गुरुदेव ने चौंकते हुए पूछा.
यही सीख गुरुदेव कि ऐसे कपटी गुरु को अंगूठा देना नहीं चाहिए, अंगूठा दिखाना चाहिए.. ऐसे... शिष्य ने गुरु को ठेंगा दिखाया और वहां से चलता बना.
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2-स्वर्ग का अधिकारी
युधिष्ठिर से जुए में द्रौपदी को जीत लेने के बाद दुर्योधन-दु:शासन सहित सभी कौरवों ने मिलकर भरी सभा में द्रौपदी को नंगा करने का कुत्सित प्रयास किया. इस अधार्मिक-अनैतिक कृत्य के परिणाम स्वरुप दुर्योधन सहित सभी कौरवों का विनाश हो गया. उन्हे अपनी करनी का फल मिला. वे नर्क के वासी हुए. जबकि जुए में अपनी पत्नी को दांव पर लगाने वाले धर्मराज युधिष्ठिर स्वर्ग में रहने के अधिकारी बने.
…इस धर्म-कथा से हमें ये सीख मिलती है कि पत्नी हाड़-मांस की एक ऐसी वस्तु(इंसान नहीं) है, जिसे जुए में दांव पर लगाने या बाजार में बेच देने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है…
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