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पाश से क्षमा याचना सहित

मेरे प्रिय कवि पाश ने कहा है,

‘सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना’
लेकिन दोस्त,
इससे कम खतरनाक नहीं होती
सपनों की मौत से पहले की प्रक्रिया
उम्मीदों का एक-एक कर ध्वस्त होते जाना
जैसे बेबस जिंदगी एड़ियां रगड़ते हुए
तिल-तिल कर दम तोड़ देती है
दोस्त, ये भी कम पीड़ादायक नहीं होता...

एक सपने के टूटने के बाद,
आंखों में दूसरा सपना पालना
और फिर उसे भी छन से टूटकर बिखरते देखना
सपने देखने और उनके टूटने के
अंतहीन सिलसिले से गुजरना
दोस्त, ये भी कम त्रासद नहीं होता...

सपनों का मर जाना वाकई खतरनाक होता है
लेकिन जबतक सपने, आखिरी हिचकी लें
जिंदगी कई मौत मर जाती है
फिर न जीने की इच्छा बचती है
और न मौत की आरजू होती है...
यकीन मानो मेरे दोस्त,
ये भी कम खतरनाक नहीं होता...


Comments

Unknown said…
लगा कि बहुत दिनों से जो अंदर रुका था लफ्ज़ों से गुज़ारिश कर रहा था कि वो उसे बांधे निकल गया। बेहतरीन रचना सर...
पर सपनों को आइसीयू में ही सही जिलाए रखना होगा। आजकल के पेशेवर बाज़ारू डाक्टरों की तरह क्योंकि इससे सपने भले बाद में डेड डिक्लेयर हो जाएं पर उससे पहले तक अच्छा माल ज़रूर दिला सकते हैं। यही तो बाज़ार का नियम है और देश की आर्थिक ताकत पर तो सुना है कि ओबामा तक की नज़र है।

धन्यवाद इस खूबसूरत रचना कि लिए...
सपनों का मर जाना वाकई खतरनाक होता है
लेकिन जबतक सपने, आखिरी हिचकी लें
जिंदगी कई मौत मर जाती है
फिर न जीने की इच्छा बचती है
और न मौत की आरजू होती है...
यकीन मानो मेरे दोस्त,
ये भी कम खतरनाक नहीं होता...

लाजवाब लेखन .....!!
vikas kumar singh said…
हर एक लाइन में सपनों के बहाने इंसान के बार बार मरने की आहट है....हक़ीकत तो ये हैं सर जी..कि एक सपना टूटने के बाद फिर दूसरा सपना सजाने को हौसला ही नहीं बचता...दर्द तब और बढ़ जाता है जब ज़िंदगी को बरकरार रखने के लिए एक बार फिर सपने बुनने की बात की जाती है...क्या खूब लिखा है आपने..

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