कल यानी 23 मार्च भगत सिंह का ही नहीं, पंजाबी के मशहूर कवि अवतार सिंह संधू ‘पाश’ की भी शहादत का दिन है... फर्क सिर्फ ये है कि भगत सिंह गुलाम भारत की आजादी की लड़ाई में शहीद हुए थे, जबकि पाश आजाद भारत में... पाश ने भ्रष्ट राजनीति से उपजी सरकारी तानाशाही और उसी से निकले खालिस्तानी आतंकवाद दोनों के खिलाफ अपनी कविताओं के जरिए आवाज बुलंद की थी... वे दोनों की आंख की किरकिरी बने हुए थे... 23 मार्च 1988 को खालिस्तानी उग्रवादियों ने महज उनकी हत्या कर दी... पाश उस समय महज 38 साल के थे... पाश और भगत सिंह दोनों वामपंथी विचारधारा के समर्थक थे... और हर तरह की गैर बराबरी और तानाशाही के खिलाफ... पाश भगत सिंह से काफी प्रभावित भी थे... 1982 में उन्होने शहादत दिवस पर शहीदे आजम की याद में एक कविता भी लिखी थी... पाश की उसी कविता से पाश और भगत सिंह दोनों को श्रद्धांजली... ये बताते हुए भी कि विचार कभी नहीं मरते... न भगत सिंह के मरे और न ही पाश के...
उसकी शहादत के बाद बाकी लोग
किसी दृश्य की तरह बचे
ताजा मुंदी पलकें देश मे सिमटती जा रही झांकी की
देश सारा बच रहा साकी
उसके चले जाने के बाद
उसकी शहादत के बाद
अपने भीतर खुलती खिड़की में
लोगों की आवाजें जम गयीं
उसकी शहादत के बाद
देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने
अपने चेहरे से आँसू नही, नाक पोंछी
गला साफ़ कर बोलने की
बोलते ही जाने की मशक की
उससे संबंधित अपनी उस शहादत के बाद
लोगों के घरों में
उनके तकियों मे छिपे हुए
कपड़े की महक की तरह बिखर गया
शहीद होने की घड़ी में
वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह निस्तेज नहीं था ।
उसकी शहादत के बाद बाकी लोग
किसी दृश्य की तरह बचे
ताजा मुंदी पलकें देश मे सिमटती जा रही झांकी की
देश सारा बच रहा साकी
उसके चले जाने के बाद
उसकी शहादत के बाद
अपने भीतर खुलती खिड़की में
लोगों की आवाजें जम गयीं
उसकी शहादत के बाद
देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने
अपने चेहरे से आँसू नही, नाक पोंछी
गला साफ़ कर बोलने की
बोलते ही जाने की मशक की
उससे संबंधित अपनी उस शहादत के बाद
लोगों के घरों में
उनके तकियों मे छिपे हुए
कपड़े की महक की तरह बिखर गया
शहीद होने की घड़ी में
वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह निस्तेज नहीं था ।
Comments