
सुगबुगाहट है कि भारत-पाक के क्रिकेट रिश्ते फिर बहाल हो सकते हैं... आईसीसी के अध्यक्ष बनने के बाद इधर शरद पवार ने तो ये संकेत दिए ही हैं... उधर भारत पाक के विदेश सचिवों की वार्ता के बाद रिश्तों में गर्माहट लाने के लिए सरकार भी क्रिकेट डिप्लोमेसी अपनाने के मूड में है... और हो भी क्यों नहीं आखिर दोनों देशों के अवाम के लिए क्रिकेट को लेकर दीवानगी जुनून के हद तक है... भारत-पाक के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के लिए ये अच्छी खबर है... लेकिन शंकाएं भी कम नहीं है... और इसके कई वाजिब कारण भी हैं...
खेल को खेल ही रहने दो... कोई नाम न दो... प्यार को प्यार ही रहने दो की तर्ज पर कहा जा सकता है कि क्रिकेट को भी खेल ही रहने देना चाहिए... लेकिन हिंदुस्तान-पाकिस्तान की राजनीति ने क्रिकेट को भी सियासत का हिस्सा बना दिया... नतीजा ये कि दोनों देशों के राजनेता क्रिकेट के बहाने अपने विरोधियों को चित करने की गुगली फेंकते रहे और भारत-पाक क्रिकेट संबंध सियासत और खेल के बीच पेंडुलम की तरह झूलता रहा...
राजनीति खेल नहीं है, लेकिन भारत में खेल भी राजनीति का एक अहम हिस्सा है... खासकर क्रिकेट... वो भी भारत-पाक संबंधों के मामले में... सियासत के मिजाज के मुताबिक भारत-पाक के क्रिकेट रिश्ते बदलते रहते हैं... खेल कोई भी हो, वो देश का सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व करता है... क्रिकेट भी एक खेल ही है, लेकिन भारत-पाक की सियासी बिसात पर संबंधों को बनाने-बिगाड़ने के लिए क्रिकेट को खेल की तरह नहीं मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जाता है... जिसका खामियाजा सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट को उठाना पड़ता है... करोड़ों क्रिकेट प्रेमी दुनिया के सबसे रोमांचक क्रिकेट मुकाबले यानी भारत-पाक की भिड़ंत देखने से वंचित रह जाते हैं...
कहने को तो भारत-पाक के बीच क्रिकेट संबंध तभी बन गए थे, जब दोनों देश विभाजन की पीड़ा के बीच आजादी का जश्न मना रहे थे... 1952-53 में पाकिस्तानी टीम के भारत दौरे से इस रिश्ते की शुरुआत हुई थी... 1960-61 तक भारत-पाक के बीच क्रिकेट रिश्ते में गर्माहट बरकरार रही, लेकिन 1965 और 71 की जंग ने इस रिश्ते में कड़वाहट घोल दी... इसके बाद अगले 18 साल तक दोनों देशों के बीच क्रिकेट रिश्ते बहाल नहीं हुए...
1978 में बिशन सिंह बेदी की अगुवाई में भारतीय टीम के पाकिस्तान दौरे के साथ दोनों देशों के बीच फिर से क्रिकेट श्रृंखला की शुरुआत हुई, लेकिन ये सिलसिला सिर्फ दस साल तक बरकरार रहा... इसके बाद 1997 तक दोनों देशों ने आपस में कोई सीरीज नहीं खेली... और फिर जब दोनों देशों के बीच क्रिकेट संबंध बहाल हुए तो बीच-बीच में सियासत इसमें पलीता लगाती रही... कारण कभी परमाणु परीक्षण बना तो कभी कारगिल युद्ध तो कभी संसद पर हमला... हाल फिलहाल मुंबई हमले के बाद से दोनों देशों के बीच कोई द्विपक्षीय श्रृखंला नहीं हुई है...
राजनीति के खिलाड़ी अपनी सियासी पारी संवारने के लिए क्रिकेट की पिच पर जमकर छक्के-चौके लगाते हैं... दोनों देशों के हुक्मरान और सियासी पार्टियां क्रिकेट के बहाने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती... भारत में शिवसेना और मनसे जैसी पार्टियां इसकी उदाहरण हैं, जो देशभक्ति की नौटंकी के नाम पर पाक क्रिकेटरों को हिंदुस्तान में न खेलने देने की चेतावनी देती रहती हैं... यहां तक कि पिचों को खोद डालती है... और ऐसे में अब जब फिर से भारत-पाक के बीच क्रिकेट संबंध बहाल होने की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है, तो सवाल उठता है कि क्या वाकई ये हिंदुस्तान पाकिस्तान में खेल से आगे बढ़कर धर्म का दर्जा रखने वाले क्रिकेट की गरिमा को बरकरार रखने की गंभीर कोशिश है... या फिर से सियासत की पिच पर क्रिकेट बोल्ड हो जाएगा...
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