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Showing posts from 2010

पाश से क्षमा याचना सहित

मेरे प्रिय कवि पाश ने कहा है, ‘सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना’ लेकिन दोस्त, इससे कम खतरनाक नहीं होती सपनों की मौत से पहले की प्रक्रिया उम्मीदों का एक-एक कर ध्वस्त होते जाना जैसे बेबस जिंदगी एड़ियां रगड़ते हुए तिल-तिल कर दम तोड़ देती है दोस्त, ये भी कम पीड़ादायक नहीं होता... एक सपने के टूटने के बाद, आंखों में दूसरा सपना पालना और फिर उसे भी छन से टूटकर बिखरते देखना सपने देखने और उनके टूटने के अंतहीन सिलसिले से गुजरना दोस्त, ये भी कम त्रासद नहीं होता... सपनों का मर जाना वाकई खतरनाक होता है लेकिन जबतक सपने, आखिरी हिचकी लें जिंदगी कई मौत मर जाती है फिर न जीने की इच्छा बचती है और न मौत की आरजू होती है... यकीन मानो मेरे दोस्त, ये भी कम खतरनाक नहीं होता...

दो बोध-कथाएं

1-अंगूठा वत्स... तुम तो भारतीय संस्कृति का अपमान कर रहे हो..! क्या तुम्हे मालूम नहीं कि हमारी संस्कृति में गपरु शिष्य परंपरा कितनी गौरव पूर्ण रही है..? याद है गुरुदेव! शिष्य ने विनम्रता से जवाब दिया फिर गुरुदक्षिणा देने से इंकार क्यों कर रहे हो..? क्या तुम्हे गुरु द्रोण और एकलव्य की कहानी नहीं ज्ञात है...? ज्ञात है गुरुदेव, इसीलिए तो सचेत और सतर्क हूं... शिष्य ने उसी विनम्रता से जवाब दिया क्या मतलब...? गुरुदेव चौंके मतलब ये गुरुदेव कि एकलव्य सीधा और सरल आदिवासी युवक था.. छल कपट से कोसो दूर... इसीलिए गुरु द्रोण के कपटपूर्ण व्यवहार को नहीं समझ पाया और अपना अंगूठा ही नहीं अपना हुनर भी गंवा बैठा. लेकिन एक बात है गुरुदेव... क्या...? गुरुदेव ने पूछा उसने अपना अंगूठा गंवाकर आनेवाली पीढ़ी के सारे शिष्यों को सीख जरुर दे डाली. सीख... कैसी सीख...? गुरुदेव ने चौंकते हुए पूछा. यही सीख गुरुदेव कि ऐसे कपटी गुरु को अंगूठा देना नहीं चाहिए, अंगूठा दिखाना चाहिए.. ऐसे... शिष्य ने गुरु को ठेंगा दिखाया और वहां से चलता बना. --------------------------------------------- 2-स्वर्ग का अधिकारी युध...

आमिर, पीपली लाइव और किसान...

पीपली लाइव हिट हो गई... आमिर खान की पिछली फिल्मों की तरह ही पीपली लाइव भी रिलीज से पहले ही इतनी सुर्खियां बटोर ले गई की हिट हो गई... आमिर खान अपनी फिल्मों की मार्केटिंग का फंडा खूब जानते हैं... बाजार की फिलॉसफी कहती है कि प्रोडक्ट नहीं प्रोडक्ट का विज्ञापन मायने रखता है... आमिर खान बाजार के इसी फार्मूले पर चले और कामयाब रहे... महज तीन करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म के प्रचार पर उन्होने सात करोड़ की भारी भरकम रकम खर्च की... और फिर भी फायदे में हैं... रिलीज से पहले ही पीपली लाइव कई करोड़ की कमाई कर चुकी है, जो यकीनन आगे और बढ़ेगी ही... जाहिर है आम जनता को खून का आंसू रुलाने वाली महंगाई डायन का असर आमिर खान ने अपनी फिल्म पर नहीं पड़ने दिया... पीपली लाइव वाकई लीक से हटकर बनी एक संजीदा फिल्म है... और यकीनन ये फिल्म आमिर खान के कद को और ऊंचा ही करेगी... लेकिन सवाल है कि ये फिल्म उन किसानों का कितना भला करेगी, जो कर्ज के बोझ तले भूखमरी से निजात के लिए खुदकुशी करने पर मजबूर हो जाते हैं... इसे शायद बाजार का ही दबाव कहें या मार्केटिंग का नुस्खा कि फिल्म की कहानी में भूखमरी के शिकार किसानों ...

ऑक्टोपस पॉल... आई हेट यू...!

‘ऑक्टोपस पॉल... आई हेट यू...! दुनिया के सबसे रोमांचक खेल के सबसे रोमांचक मैच का सारा रोमांच तुमने खत्म कर दिया...!’ ...वैसे तो किसी बेजुबान जानवर को नापसंद करने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन इंसानी फितरत ने इस आठ पैरों वाले जानवर ऑक्टोपस का ऐसा इस्तेमाल किया है, कि वर्ल्ड कप फुटबॉल के फाइनल में मैच रेफरी की मैच खत्म होने की घोषणा करती व्हीसिल जैसे ही बजी, मुंह से यही शब्द निकले... एक्स्ट्रा टाइम के आखिरी क्षणों में किए गए गोल की वजह से स्पेन ने बाजी जीत ली थी... वो फुटबॉल की दुनिया का नया बादशाह बन गया था... लेकिन इस जीत के नायक स्पेन के खिलाड़ी नहीं बने... और न ही कोच, जिन्होने बड़ी मेहनत से अपनी टीम को तराशा था... बल्कि इस जीत का और 2010 के इस पूरे फुटबॉल वर्ल्ड कप का हीरो घोषित हुआ आठ पैरों वाला जानवर ऑक्टोपस पॉल, जिसकी भविष्यवाणी सच साबित हुई... ऑक्टोपस पॉल और उसकी भविष्यवाणियां मीडिया की सबसे बड़ी सुर्खियां रही... खेल से बढ़कर... खिलाड़ियों से बढ़कर... हालांकि ऐसा नहीं था कि स्पेन और नीदरलैंड के बीच हुए मुकाबले में रोमांच और जुनून की कोई कमी थी... मैच कांटे का था... दोनों टीमें बरा...

धोनी की शादी और मीडिया का तमाशा

अक्सर दूसरों को चर्चा में रखनेवाला मीडिया इस हफ्ते खुद सुर्खियों में छाया रहा... और इसकी वजह बनी धोनी की आनन फानन में हुई सगाई और शादी... एक ओर पूरा विपक्ष महंगाई के खिलाफ देशव्यापी हड़ताल का मोर्चा खोले हुए था, तो दूसरी ओर महंगाई और हड़ताल के बीच पिसती पब्लिक अपने नसीब को कोस रही थी... लेकिन इस सबसे बेपरवाह सरोकारों का दंभ भरने वाला मीडिया, धोनी किस घोड़ी पर चढ़े... क्या पहना और क्या खाया... इसे जानने-बताने में मशगूल था... ऐसे में जब जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव ने मीडिया की भूमिका पर सवाल खड़े किए तो ताजुब्ब कैसा... शरद यादव ने पत्रकारों से बड़े तल्ख लहजे में सवाल किया था कि वो बताएं कि देश के लिए बड़ा मुद्दा क्या है... महंगाई या फिर धोनी की शादी... और मीडिया के इस बदलते चाल चरित्र के पक्ष में लाख दलीले देने वाला भी ये नहीं कह सकता कि शरद यादव की नाराजगी जायज नहीं थी... धोनी की शादी की कवरेज को लेकर जिस तरह मीडिया में हड़कंप मचा हुआ था... वो मीडिया के असली चेहरे को बयान करने के लिए काफी था... यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि धोनी ने अपनी शादी और सगाई के बारे में न तो मीडिया को कोई खबर ...

सियासत की पिच पर बोल्ड होता क्रिकेट

सुगबुगाहट है कि भारत-पाक के क्रिकेट रिश्ते फिर बहाल हो सकते हैं... आईसीसी के अध्यक्ष बनने के बाद इधर शरद पवार ने तो ये संकेत दिए ही हैं... उधर भारत पाक के विदेश सचिवों की वार्ता के बाद रिश्तों में गर्माहट लाने के लिए सरकार भी क्रिकेट डिप्लोमेसी अपनाने के मूड में है... और हो भी क्यों नहीं आखिर दोनों देशों के अवाम के लिए क्रिकेट को लेकर दीवानगी जुनून के हद तक है... भारत-पाक के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के लिए ये अच्छी खबर है... लेकिन शंकाएं भी कम नहीं है... और इसके कई वाजिब कारण भी हैं... खेल को खेल ही रहने दो... कोई नाम न दो... प्यार को प्यार ही रहने दो की तर्ज पर कहा जा सकता है कि क्रिकेट को भी खेल ही रहने देना चाहिए... लेकिन हिंदुस्तान-पाकिस्तान की राजनीति ने क्रिकेट को भी सियासत का हिस्सा बना दिया... नतीजा ये कि दोनों देशों के राजनेता क्रिकेट के बहाने अपने विरोधियों को चित करने की गुगली फेंकते रहे और भारत-पाक क्रिकेट संबंध सियासत और खेल के बीच पेंडुलम की तरह झूलता रहा... राजनीति खेल नहीं है, लेकिन भारत में खेल भी राजनीति का एक अहम हिस्सा है... खासकर क्रिकेट... वो भी भारत-पाक...

बनारस… जिंदगी और जिंदादिली का शहर

( बनारस न मेरी जन्मभूमि है और न ही कर्मभूमि... फिर भी ये शहर मुझे अपना लगता है... अपनी लगती है इसकी आबो हवा और पूरी मस्ती के साथ छलकती यहां की जिंदगी... टुकड़ों-टुकड़ों में कई बार इस शहर में आया हूं मैं... और जितनी बार आया हूं... कुछ और अधिक इसे अपने दिल में बसा कर लौटा हूं... तभी तो दूर रहने के बावजूद दिल के बेहद करीब है ये शहर... मुझे लगता है कि आज की इस व्यक्तिगत महात्वाकांक्षाओं वाले इस दौर में, जहां पैसा ज्यादा मायने रखने लगा है, जिंदगी कम... इस शहर से हमें सीखने की जरुरत है...इस बार इसी शहर के बारे में...) साहित्य में मानवीय संवेदनाओं और अनुभूतियों के नौ रस माने गये हैं... लेकिन इसके अलावा भी एक रस और है, जिसे साहित्य के पुरोधा पकड़ने से चूक गये... लेकिन जिसे लोक ने आत्मसात कर लिया... वह है बनारस... जीवन का दसवां रस... जिंदगी की जिंदादिली का रस... जिसमें साहित्य के सारे रस समाहित होकर जिंदगी को नया अर्थ देते हैं... जिंदगी को मस्ती और फक्कड़पन के साथ जीने का अर्थ... कमियों और दुख में भी जिंदगी के सुख को तलाश लेने का अर्थ़... बहुत पुराना है बनारस का इतिहास... संभवतः सभ्यता...