
‘ऑक्टोपस पॉल... आई हेट यू...! दुनिया के सबसे रोमांचक खेल के सबसे रोमांचक मैच का सारा रोमांच तुमने खत्म कर दिया...!’...वैसे तो किसी बेजुबान जानवर को नापसंद करने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन इंसानी फितरत ने इस आठ पैरों वाले जानवर ऑक्टोपस का ऐसा इस्तेमाल किया है, कि वर्ल्ड कप फुटबॉल के फाइनल में मैच रेफरी की मैच खत्म होने की घोषणा करती व्हीसिल जैसे ही बजी, मुंह से यही शब्द निकले... एक्स्ट्रा टाइम के आखिरी क्षणों में किए गए गोल की वजह से स्पेन ने बाजी जीत ली थी... वो फुटबॉल की दुनिया का नया बादशाह बन गया था... लेकिन इस जीत के नायक स्पेन के खिलाड़ी नहीं बने... और न ही कोच, जिन्होने बड़ी मेहनत से अपनी टीम को तराशा था... बल्कि इस जीत का और 2010 के इस पूरे फुटबॉल वर्ल्ड कप का हीरो घोषित हुआ आठ पैरों वाला जानवर ऑक्टोपस पॉल, जिसकी भविष्यवाणी सच साबित हुई... ऑक्टोपस पॉल और उसकी भविष्यवाणियां मीडिया की सबसे बड़ी सुर्खियां रही... खेल से बढ़कर... खिलाड़ियों से बढ़कर...
हालांकि ऐसा नहीं था कि स्पेन और नीदरलैंड के बीच हुए मुकाबले में रोमांच और जुनून की कोई कमी थी... मैच कांटे का था... दोनों टीमें बराबरी की थी... उनका अटैक और डिफेंस दोनों सांसे रोक देने वाला था... लेकिन धड़कने बढ़ा देने वाले इस मैच का सारा जुनून और रोमांच ऑक्टोपस के आठ पैरों में जकड़ कर दम तोड़ गया... मैच में कौन जीतेगा इससे ज्यादा लोगों की उत्सुकता ये जानने में रही कि स्पेन की जीत की घोषणा वाली ऑक्टोपस पॉल की भविष्यवाणी सही साबित होती है कि नहीं... और इस उत्सुकता ने फुटबॉल के रोमांच और जुनून पर ब्रेक लगा दिया... मीडिया में स्पेन की जीत के साथ ऑक्टोपस पॉल के जीत की ब्रेकिंग चलने लगी... फुटबॉल गौण हो गया... आधारहीन तर्कों पर टिकी भविष्यवाणी महत्वपूर्ण... टीवी से लेकर प्रिंट तक हर जगह ऑक्टोपस पॉल ही छाया रहा...
यहां सवाल ये नहीं है कि ऑक्टोपस पॉल ने जो भविष्यवाणियां की वो कितनी सही साबित हुई... बल्कि सवाल ये है कि आखिर एक ऐसे जानवर की भविष्यवाणी पर कैसे विश्वास किया जा सकता है, जिसे न तो भौगोलिक सीमाओं में बंटे देशों के बारे में पता होगा और न ही फुटबॉल के बारे में... और ऑक्टोपस पॉल की सच साबित हुई तमाम भविष्यवाणियों के बावजूद सवाल ये भी कि आखिर इनका तार्किक आधार क्या है... और इन सबसे बड़ा सवाल ये कि अगर ये मान भी लिया जाय कि ऑक्टोपस पॉल को सचमुच मैच के बारे में पता था तो क्या ये मैच पहले से फिक्स था... कुदरत की तरफ से... और अगर ऐसा है कि सबकुछ कुदरती तौर पर फिक्स है तो फिर इंसानी कवायदों का मतलब क्या...
बहरहाल अब डर है कि कहीं आगे फुटबॉल के मैच या कोई और खेल इस ऑक्टोपस या और किन्ही जानवरों की भविष्यवाणियों के साए तले ही न खेले जायं... इस फुटबॉल वर्ल्डकप में ऑक्टोपस पॉल के चर्चा में आने के बाद ही तो सिंगापुरी तोते और आस्ट्रेलियाई मगरमच्छ भी नए भविष्यकवक्ता के रुप में उभर गए... जानवरों के सिक्स्थ सेंस की बातें होने लगी... डर ये भी कि भारत जैसे देश में जहां पहले से ही ज्योतिषियों और बाबाओं का बोलबाला है जानवरों के रुप में नए भविष्यवक्ताओं की बाढ़ न आ जाय... और हिंदुस्तानी मीडिया जो ऐसी हर अनहोनी या बेसिर पैर की बातों में अपनी टीआरपी और सेलिंग ढूंढता रहता है, इन नए भविष्यवक्ताओं और ज्योतिषाचार्यों का अघोषित प्रवक्ता बनकर उनका गुणगान करने में न लग जाय... जरा सोचिए अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा... फिर हर क्रिकेट मैच से पहले (क्रिकेट इसलिए कि हिंदुस्तान में क्रिकेट ही बिकता है) हर चैनल पर कोई ऑक्टोपस बाबा, तो कोई संत तोताराम... तो कोई साध्वी बिल्ली... तो कोई महात्मा घड़ियाल ये भविष्यवाणी करता फिरेगा कि इस मैच में भारत जीतेगा या हारेगा... या फिर तेंदुलकर सेंचुरी लगाएंगे कि क्लीन बोल्ड हो जाएंगे... तेंदुलकर की अब तक का सारा खेल सारी कामयाबी इन नए भविष्यवक्ताओं के आगे पानी भरने लगेंगी... और सिर्फ क्रिकेट ही क्यों फिर तो ज्योतिष के ये नए सितारे हर मामले और हर क्षेत्र में भविष्यवाणियां करते फिरेंगे... और अब जरा ये सोचिए की अगर ऐसा हुआ तो बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर (कल के भारत की आनेवाली तस्वीर) कैसी होगी...
नोट- वैसे ऑक्टोपस पॉल ने एकबात और साबित की है कि तांत्रिकों, ज्योतिषियों और अंधविश्वासियों वाले देश के रुप में हिंदुस्तान को हिकारत की निगाहों से देखनेवाले पश्चिमी देश भी इस मामले में कम नहीं बल्कि हिंदुस्तान से दो कदम आगे ही हैं... अंधविश्वासों की उनकी साड़ी हमारी साड़ी से कम दागदार नहीं है... पश्चिमी देशों की खुली इस कलई से हम अपनी पीठ थपथपा सकते हैं... आप भी थपथपाइए, लेकिन इस सवाल के साथ कि क्यों और कबतक...
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सही है !!